छत्तीसगढ़ संपादक को जान से मारने की धमकी ने खोली सिस्टम की पोल…
छत्तीसगढ़-: संपादक को जान से मारने की धमकी ने खोली सिस्टम की पोल मनगढ़त कथित विधायक के धमकी आरोप पर सरगुजा से दिल्ली तक गर्म हुआ माहौल ,पर पत्रकारों के जान की कीमत माटी के मोल…
छत्तीसगढ़, ही नहीं बल्कि अब यदि यह कहें कि पूरे भारत में पत्रकारिता के अस्तित्व पर खतरा मंडरा रहा है तो यह कतई भी अतिशयोक्ति नहीं होगी आज जिस तरह से अभिव्यक्ति की आजादी को दबाने का कार्य किया जा रहा है जिस कलम के दम पर भारत ने अंग्रेजों से गुलामी से स्वतंत्रता दिलाने में अहम भूमिका निभाई थी आज वह चौथा स्तंभ पर नौकरशाहों या यूं कहें कि शासन प्रशासन एवं तथाकथित राजनेताओं के वजह से खतरे में आन पड़ी है जिसका जीता जागता उदाहरण सरगुजा जिला में देखा जा सकता है जहां लंबे समय से निष्पक्ष एवं स्वतंत्र पत्रकारिता कर रहे एवं गोदी मीडिया के विपरीत असत्य अन्याय एवं अत्याचार पर लगातार बेबाकी से खबर लिख अपनी एक अलग अमिट छाप बना चुके भारत सम्मान दैनिक समाचार पत्र के संपादक कुमार जितेंद्र जायसवाल के ऊपर लगातार शासन प्रशासन द्वारा उनकी आवाजों को दबाने का भरसक प्रयास किया जाता है किंतु अपने तेजतर्रार छवि व पत्रकारिता के जुनून की वजह से सभी को क्लीन चिट दे निरंतर सत्य के मार्ग पर आगे बढ़ते रहते हैं सत्य दिखाने का ही खामियाजा था कि उन्हें 2018 में झूठे केस में पुलिस वालों ने बगैर कोई कारण एफ आई आर दर्ज किया गया | यहां तक ही नहीं बल्कि उन पर गाड़ी से एक्सीडेंट कर मारने का भी असफल प्रयास किया गया था और अब बिगत दिनों बलात्कार जैसे संगीन मामले को पुलिस द्वारा दबाने वाली खबर को लेकर पीड़िता के पक्ष में भारत सम्मान के लाइव फेसबुक पेज पर दिखाया गया था जिससे जिले के पुलिस कप्तान क्षुब्ध हो गए इसी दरमियान समाचार संकलन के सिलसिले पर कोतवाली जाने पर विगत 27 जुलाई को भारत सम्मान संपादक के साथ अमानवीय व्यवहार करते हुए जान से मारने की धमकी दे झूठे केस में फसाने की भी बात कही गई जिसकी शिकायत विभिन्न पत्रकार संगठनों के बैनर तले स्वयं कुमार जितेंद्र जायसवाल ने कर पुलिस अधीक्षक तुकाराम कामले के ऊपर जान से मारने की धमकी का आरोप लगाया पर इसे विडंबना कहें या दुर्भाग्य की इस मामले को ना तो हाई प्रोफाइल बताया गया और ना ही किसी भी राजनैतिक सामाजिक दलों के नेताओं का कोई बयान ही समर्थन में आए अपनी जान जोखिम में डाल पत्रकार समाज के लिए नि:स्वार्थ भाव से काम करते हैं वही इस घटना पर किसी प्रकार की कोई हलचल नहीं होना दुर्भाग्य का बात है | सवाल यह उठता है कि क्या पत्रकारों की जान की कीमत कुछ भी नहीं है जो जब चाहे उन्हें बोल कर निकल जाए कोई फर्क नहीं पड़ता जबकि हाल ही में विधायक द्वारा बृहस्पति द्वारा अपनी जान को खतरा बता पूरे प्रदेश में ही नहीं बल्कि दिल्ली तक खूब सुर्खियां बटोरी तो वही कई सामाजिक व राजनीतिक दलों के प्रतिनिधि नेतागण बयान बाजी कर पुरा माहौल को अशांत व सरगर्म बना दिया ऐसा प्रतीत होता था कि सरकार की कुर्सी तक हिल जाएगी यही नहीं बल्कि विधानसभा जैसे गरिमामय सदन में इस हास्यापद घटना को लेकर लगातार दो दिनों तक बहिर्गमन भी किया गया वहीं पत्रकार को मिली धमकी को लेकर ना तो पक्ष विपक्ष कुछ कहने को तैयार है और ना ही शासन-प्रशासन आखिर कब तक पत्रकारों के साथ जो समाज को आईना दिखाने का काम करते हैं उनके साथ अन्याय व अत्याचार होता रहेगा |
सत्तारूढ़ पार्टी ने पत्रकार सुरक्षा कानून अपने घोषणा पत्र में किया था जो केवल घोषणा ही बनकर रह गया है अभी यदि पत्रकार सुरक्षा कानून लागू नहीं हुआ तो निष्पक्ष व स्वतंत्र पत्रकारिता करना शायद असंभव हो जाएगा बहरहाल संपादक कुमार जितेंद्र जायसवाल ने इसकी शिकायत तो कर दी है किंतु अब देखना यह है कि इस पर क्या एक्शन आगे होता है? अभी तो फिलहाल यही कहना लाजमी होगा कि पत्रकार की जान की कीमत दल्लाओं से भी कम है।
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