कोरबा

छत्तीसगढ़ में मानव अधिकार संगठन का विस्तार किया जा रहा है

कोरबा – छत्तीसगढ़ में मानव अधिकार संगठन का विस्तार किया जा रहा है –
संभागीय अध्यक्ष श्री ए आर साव द्वारा जिला कोरबा में प्रवास के दौरान बताया गया कि हमारे छत्तीसगढ़ में उद्योगों की बहुलता है जिसके कारण मानवाधिकार संगठन का निगरानी भी इस प्रदेश के प्रभावित किसानों, उद्योग से प्रभावित क्षेत्र के बेरोजगारों की रोजगार ,पर्यावरण सुरक्षा हेतु आवश्यक है। अंधाधुंध वृक्षों की कटाई ,शासन की योजनाओं द्वारा मनरेगा के तहत निर्माण कार्य में और वृक्षारोपण में लापरवाही के साथ ही- बाल श्रम, महिलाओं पर अत्याचार, समाज में -अन्याय और भ्रष्टाचार की सतत निगरानी, मानवाधिकार हनन का अध्ययन और इस पर संभावित प्रतिक्रिया हेतु सशक्त संगठन की जरूरत है।

इसी उद्देश्य से छत्तीसगढ़ मानवाधिकार का विस्तार प्रत्येक संभाग, जिला, तहसील से लेकर ग्राम पंचायत तक किया जाना सुनिश्चित किया जा रहा है ।संगठन के सलाहकार के रूप में विधि के ज्ञाता -भूतपूर्व जज, माननीय उच्चतम न्यायालय, माननीय उच्च न्यायालय एवं अन्य न्यायालयों के अधिवक्ताओं के द्वारा कार्यभार लिया गया है। वहींसमाज के प्रबुद्ध समाज सेवी और पत्रकार वर्ग भी इस संगठन में जुड़कर अपना सहयोग दे रहे हैं।

श्री साव जी ने बताया कि संगठन नए वर्ष में अपना दायित्व पूर्ण रूप से छत्तीसगढ़ प्रदेश में उठाने हेतु तैयार हो जाएगा वर्तमान में छत्तीसगढ़ के कई जिले में विस्तार हो चुका है।

मीडिया को- श्री साव जी द्वारा बताया गया कि शोषण का जड़ ग्राम पंचायत स्तर से प्रारंभ होता है आज मनरेगा का कार्य को देखा जाए तो जो मनरेगा श्रमिक के रूप में कार्य करते हैं वास्तव में उन श्रमिकों का पारिश्रमिक किसी अन्य के खाता द्वारा आहरित किया है, स्वच्छता अभियान के तहत शौचालय निर्माण हो या प्रधानमंत्री आवास योजना के तहत आवास योजना सभी में लीपापोती किया जा रहा है।

शासन के कई योजनाओं का लाभ पात्र हितग्राहियों को नहीं मिल पाता ग्राम पंचायत स्तर पर भी -वास्तव में पात्र हितग्राही को अपात्र घोषित कर उन्हें लाभ से वंचित किया जा रहा है, वही उद्योगों द्वारा अंधाधुंध वृक्षों की कटाई किया जा रहा है ,उद्योगों द्वारा रसायन युक्त जहरीला पानी हमारे जल सोत नदी नालों में प्रवाहित किया जा रहा है, तो इन से उड़ने वाले धुआ, भारी वाहनों के उपयोग से धूल हमारे वातावरण को प्रदूषित करते हैं साथ ही ध्वनि प्रदूषण के चलते आज गांव देहात में रहने वाले गौरैया, मैना ,कौआ जैसे घरेलू पक्षियों गांव से विलुप्त हो रहे है।

संभागीय अध्यक्ष द्वारा यह भी अवगत कराया गया कि छत्तीसगढ़ औद्योगिकरण की चपेट में पूर्ण रूप से है यहां के मूल निवासी किसान है जिनकी कृषि भूमि को शासन द्वारा अधिग्रहण कर कभी कंपनी स्थापना के लिए तो कभी कंपनी के विस्तार के लिए उद्योगपतियों को दे रही है जिसका मुआवजा भी प्राप्त करने के लिए कृषक वर्ग सरकारी दफ्तरों और न्यायालयों के चक्कर लगाने पर विवश है।

स्थानीय बेरोजगारों को रोजगार ना देकर अंतर राज्यीय प्रवासी मज़दूरों को प्रधानता से रोजगार दिया जाता है कंपनियों के द्वारा छत्तीसगढ़ पुनर्वास नीति का भी पालन नहीं किया जाता।
उपरोक्त समस्त कारणों के कारण मानवाधिकार संगठन का होना नितांत आवश्यक है।

बोधन चौहान के रिपोर्ट

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