जशपुर जिला

आज हलषष्ठी व्रत विशेष –अरविंद तिवारी की कलम से

जशपुरनगर — वैसे तो भाद्रपद यानि व्रत , त्यौहार पूजापाठ का महीना है। इस महीने में जन्माष्टमी के अलावा भी कई प्रमुख बड़े व्रत , त्यौहार पड़ते हैं। पारंपरिक हिंदू पंचांग में हलषष्ठी एक महत्वपूर्ण त्यौहार है , जो देश भर में कृष्णपक्ष की षष्ठी यानि आज मनाया जायेगा। यह व्रत भगवान श्रीकृष्ण के बड़े भाई और माता देवकी एवं पिता वासुदेव के सातवें संतान बलरामजी को समर्पित है। हलषष्ठी का त्यौहार भगवान बलराम की जयंती के रूप में मनाया जाता है। बलराम को हल प्रिय होने के कारण हलधर भी कहा जाता है। हलषष्ठी को अन्य राज्यों में विभिन्न नामों से जाना जाता है, इसे गुजरात में चंद्रषष्ठी के रूप में , ब्रज क्षेत्र में बलदेव छठ को रंधन छठ के रूप मे और पूर्वी भारत में इसे ललई छठ के अलावा अनेकों स्थानों पर यह पर्व हलषष्ठी, हलछठ , हरछठ व्रत, चंदन छठ, तिनछठी, तिन्नी छठ, ललही छठ, कमर छठ, या खमर छठ के नामों से भी जाना जाता है। गुजरात के लोग इस त्‍योहार को प्रमुखता से मनाते हैं। यहांँ इस दिन शीतला माता की पूजा की जाती है। रांधन छठ के अगले दिन शीतला सप्‍तमी पर गुजरात में घरों में चूल्‍हे नहीं जलाने की परंपरा का पालन किया जाता है।इसलिये आज के दिन यहाँ महिलायें अगले दिन के लिये भी खाना बनाकर रखती हैं। और दूसरे दिन यानि सप्तमी को मंदिर या घरों में कथा सुनने के बाद पहले दिन बना ठंडा भोजन ही करती हैं। उत्तर भारत में जन्‍माष्‍टमी से पहले पड़ने वाली इस छठ को हलषष्‍ठी के रूप में मनाया जाता है। आज के दिन व्रती महिलायें अपने घरों में स्वच्छ स्थान और सही दिशा में दीवार पर भैंस के गोबर से छठी माता की आकृति बनाकर उनकी श्रृंगार करते हैं और विधिवत पूजा भी करते हैं। इस दिन महिलायें संतान के बेहतर स्‍वास्‍थ्‍य , दीर्घायु और उनकी सम्पन्नता की कामना हेतु व्रत पूरे विधि विधान से करती हैं। यह व्रत बहुत नियम कायदों के साथ रखा जाता है। इस दिन महिलायें महुवा के दातुन से दाँत साफ करती हैं। आज के दिन व्रती महिलायें ऐसे जगहों पर पैर नही रखती जहाँ फसल पैदा होनी हो। इस दिन व्रती महिलायें हल से जोती हुई किसी भी चीज का सेवन नहीं करती हैं। आज के दिन गाय के दूध व दधी का सेवन वर्जित है और बिना हल चले धरती का अन्न व शाक सब्जी खाने का विशेष महत्व है। आज दिन भर महिलायें निर्जला व्रत रहकर शाम को पूजापाठ के बाद पसहर के चाँवल , सवत्सा भैंस के दूध से निर्मित दधी , महुवा को पलास के पत्ते पर खाकर व्रत का समापन करती हैं।
हलषष्ठी के प्रचलित कथा के अनुसार प्राचीन काल में एक ग्वालिन थी जो दूध दधी बेचकर जीवन यापन करती थी। एक बार संयोग से हलषष्ठी व्रत होने के कारण सभी को उस दिन भैंस का दूध चाहिये था। ग्वालिन के पास केवल गाय का दूध था उसने झूठ बोलकर सभी को भैंस का दूध बताकर पूरा गाय का दूध बेच दिया। इससे हर छठ माता क्रोधित हो गयी और उसके पुत्र के प्राण हर लिये। जब ग्वालिन आयी तो बच्चे को मृत अवस्था में देखकर अपनी करनी पर बहुत संताप हुआ उसे यह समझते देर ना लगी कि यह सब उसके पाप की सजा है। वह सोचने लगी कि यदि मैंने झूठ बोलकर गाय का दूध ना बेचा होता और गाँव की स्त्रियों का धर्म भ्रष्ट ना किया होता तो आज मेरे बच्चे की यह दशा ना होती। अत: मुझे लौटकर लौटकर सब बातें गाँव वालों को बताकर प्रायश्चित करना चाहिये। ऐसा निश्चय कर उसने गाँव में जाकर सभी के सामने अपने गुनाह को स्वीकार किया। सभी से पैर पकड़कर क्षमा मांँगी , उसके इस तरह से विलाप को देख कर उसे सभी ने माफ़ कर दिया। जिससे हर छठ माता प्रसन्न हो गयी और उसका पुत्र जीवित हो गया। तभी उसने स्वार्थ सिद्धि के लिये झूठ बोलने को ब्रह्महत्या के समान समझा और कभी झूठ ना बोलने का प्रण कर लिया। तब ही से पुत्र की लंबी उम्र हेतु हर छठ माता का व्रत एवम पूजा की जाती हैं। कहा जाता हैं जब बच्चा पैदा होता हैं तब से लेकर छः माह तक छठी माता बच्चे की देखभाल करती हैं। इसलिये बच्चे के जन्म के छः दिन बाद छठी की पूजा भी की जाती हैं। हर छठ माता को बच्चो की रक्षा करने वाली माता भी कहा जाता है।

अविनाश राजपूत के रिपोर्ट

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