श्री गुहान पंचायत जनपद पंचायत नरहरपुर के सचिव ने बिना जीएसटी बिल के लाखों का कर दिया भुगतान..!
■ जिला पंचायत सीईओ डॉ. संजय कन्नौजे से सीधे की गई इसकी शिकायत जल्द ही कार्यवाही करवाने का दिया आश्वासन…!!!
अक्सर बड़े बड़े मंत्रियों/ अधिकारियों से आम जनता एक घिसा पिटा वाक्य आश्वासन के रूप में सुनती ही रहती है कि आपके गांव के विकास के लिए रकम की कमी आड़े नहीं आएगी। यह बात सही है कि ग्रामीण विकास के लिए जो रकमें स्वीकृत की जाती है, वे कोई मामूली राशियां नहीं होती हैं, लाखों-करोड़ों में होती हैं लेकिन कुछ ही वर्षों बाद आश्चर्य से सब लोग देखते रह जाते हैं कि विकास के नाम पर कुछ नहीं हुआ। आखिर वह बड़ी-बड़ी रकमें गई कहां? सही बात यह है कि शहरों का भ्रष्टाचार अब गांव तक पहुंच गया है और पंच- परमेश्वर भी कमाने में उस्ताद हो गए हैं । यह बात और है कि नियमों का बराबर ज्ञान न होने के कारण कहीं-कहीं उल्टा सीधा कर बैठते हैं और कानून के जाल में फँस भी जाते हैं। कांकेर के एक करीबी गांव श्री गुहान की पंचायत में ऐसा ही एक भ्रष्टाचार हुआ है जिसमें सरपंच और व्यापारी बिल बना कर लंबी रकमें खाने के चक्कर में फंसते नजर आ रहे हैं। क्योंकि हजारों लाखों की राशियों के बिल जो अधिकतर निर्माण सामग्री संबंधित हैं ,इनमें जीएसटी का कहीं उल्लेख नहीं है। यह भूल इन भ्रष्टाचारियों को बहुत महंगी पड़ने वाली है। क्योंकि ये बिल षडयंत्र पूर्वक पास भी करा लिए गए हैं और पेमेंट भी हो गया है । पेमेंट रुक जाता तो सजा कुछ छोटी हो सकती थी लेकिन पैसा गबन हो जाने के बाद मामला गंभीर हो गया है । प्राप्त सबूतों के अनुसार:–
1-चार कैश मेमो हैं, जिनमें से तीन धमतरी की एक ही फर्म के हैं और चौथा नरहरपुर के स्थानीय यश ट्रेडर्स का है। यह सभी बड़ी राशियों के बिल हैं लेकिन इनमें से किसी में भी जीएसटी का कहीं कोई उल्लेख नहीं है ,जो कि स्पष्ट रूप से भारी भ्रष्टाचार की ओर संकेत करता है।
2- वर्षा इंजीनियरिंग धमतरी के तीन कैश मेमो हैं और तीनों एक ही तारीख 27 5 21 को काटे गए हैं। यह भी जल्दबाजी में किए गए भ्रष्टाचार की ओर संकेत है।
3- चारों कैश मेमो राउंड फिगर में बड़ी-बड़ी राशियां बता रहे हैं ,जो इस बात का स्पष्ट संकेत है कि ये खानापूर्ति के हिसाब से बनाए गए हैं । इनका संबंध सौदे से नहीं बल्कि कमीशन से प्रतीत होता है।
4-ग्राम पंचायत श्रीगुहान की रोकड़ बही अर्थात कैश बुक भी संदिग्ध प्रतीत होती है ,क्योंकि इसे घसीट में लिखा गया है, जबकि बिल साफ-साफ बनाए गए हैं! कैशबुक को घसीट में लिखने के पीछे यही उद्देश्य जान पड़ता है कि इससे अंकेक्षक अर्थात ऑडिटर को घपला तो क्या ,कुछ भी समझ में ना आ सके।
5- कैश बुक का लेखन उसी में फुटनोट में प्रकाशित नियमों के आधार पर नहीं किया गया है। कॉलम के शीर्षक कुछ और हैं और उन में भरा जा रहा है कुछ और, जोकि नियमों का सरासर उल्लंघन है। राशियों को कालमों में सही ढंग से नहीं भरा गया है। जिसके कारण ऑडिटर को भी धोखा हो सकता है।
6- 1,48,000 की रकम का उल्लेख कैश बुक में दो बार हुआ है। यह मात्र भूल चूक लापरवाही है ,अथवा बहुत बड़ी भारी अनियमितता अर्थात भ्रष्टाचार है? इसका स्पष्टीकरण आवश्यक है।
7- बिलों में जीएसटी का उल्लेख ना होना न केवल बिल बनवाने वाले का अपराध है बल्कि बिल बना कर देने वाला व्यापारी भी दोषी होगा क्योंकि बिल में जो सामग्री अथवा आइटम बताए गए हैं ,वे कोई टैक्स फ्री तो हैं नहीं?
लाइव भारत 36 न्यूज़ से ब्यूरो चीफ विनोद साहू कांकेर