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सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र सारंगढ़ में लापरवाही अंतिम चरण में– नर्शों की लापरवाही एवं इलाज के अभाव में वार्ड के बिस्तर में जन्मे शिशु की मौत…!

सरकार ने कई सरकारी अस्पतालों का गठन किया है। इनमें से कई में एक अच्छा बुनियादी ढांचा है पर अधिकांश पल9Kको अच्छी तरह प्रबंधित नहीं किया जा रहा है। स्वास्थ्य सेवा उद्योग में विभिन्न स्तरों पर बहुत भ्रष्टाचार है। हर कोई पैसे कमाना चाहता है भले ही इसके लिए किसी के स्वास्थ्य की कीमत चुकानी पड़े।

सरकारी अस्पतालों में कार्यरत कर्मचारी भी रोगियों को ठीक से सेवा देने के लिए प्रतिबद्ध नहीं हैं। ऐसे कई मामले देखने को मिले हैं जहां रिपोर्ट गलत साबित हो जाती है और रोगियों को समय पर दवा नहीं मिल पाती। इसके अलावा जब अस्पताल में दवाएं और चिकित्सा उपकरणों की आपूर्ति की बात आती है तो कुप्रबंधन देखने को मिलता है।

न केवल मरीजों, डॉक्टरों को भी इस तरह की समस्याओं का सामना करना पड़ता है। डॉक्टरों का कर्तव्य रोगी की जांच करना, समस्या को दूर करना, इलाज करना और रोगी की स्थिति की निगरानी करना है।

सारंगढ़ सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र में नर्सों और कर्मचारियों की मनमानी भी डॉक्टरों की सह के कारण किस कदर बड़ चुकी है किसी से छुपा नही है। मरीजोंं को नर्सों के हवाले छोड़ दिया जाता है। ऐसे में अधिकांश समय नर्स अपनी जिम्मेदारी निभाने के बजाए केबिन में बैठकर गप्पे-हांकते रहती हैं।

डॉक्टरों को रिपोर्टों का विश्लेषण करने और रोगी की स्थिति की निगरानी करने के लिए खर्च करने का समय फालतू के कार्यों में होता है। यह काम डॉक्टरों पर बोझ और उनके और मरीजो के बीच असंतोष पैदा करता है।

पूरे प्रदेश में ऐसे कई ऐसे नर्स स्टाफ भी हैं जो इस कोरोना काल मे अपनी जान की बाजी लगाकर मरीजों के लिए देवदूत बन कर उनकी सुरक्षा में दिन रात लगी हैँ।

लेकिन अगर बात सारंगढ़ की आती है तब मरीजों के लिए यही नर्स देवदूत की जगह हिटलर से या कहें कि यमदूत से भी कम नही लगती हैं।

घटना कुछ इस प्रकार से है:-
एक गर्भवती महिला उषा(बदला हुआ नाम) दिनांक 29 जून 2020 दिन सोमवार को प्रसव पीड़ा होने पर विश्वास के साथ सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र सारंगढ़ डिलीवरी हेतु आती है।

गरीबों के लिए एक मात्र सहारा समुदायिक स्वास्थ्य केंद्र सारंगढ़ में जब वो आती है तो डॉक्टर नदारद रहते हैं।
ड्यूटी में उपस्थित नर्स महिला को देखते ही वापिस अपने घर चले जाने की बात कहती हैं कि अभी टाइम नही हुआ है तुम मनमानी करके आ गयी हो..महिला के साथ आये परिजन जब दर्द और महिला की वस्तुस्थिति को देखते हुवे भर्ती कराने की गुहार लगाते हैं तो उक्त नर्स द्वारा उनके परिजनों के साथ भी अभद्रतापूर्ण व्यवहार करने में कोई कसर नही छोड़ा जाता क्योंकि, नर्स के नजर में उक्त महिला गरीब एवम ग्रामीण नजर आती है।

जब परिजनों की गुहार बढ़ती है तो रात्रि कालीन डॉक्टर श्री मनहर जी आते हैं और उक्त महिला को औपचारिकता पूर्ण करते हुवे भर्ती प्रक्रिया पूर्ण कर अपने कर्तव्य का इति श्री करके प्रसव पीड़ित महिला को वार्ड में भर्ती कर लेते हैं।

रात्रि काल मे जब बेचारी महिला दर्द में कराह रही होती है तो ड्यूटी में उपस्थित नर्स परिजनों को दुत्कारते हुवे कहती हैं कि तुम देहाती लोग के कारण हमारा नींद खराब हो जाता है प्रतिदिन..!

इतने रात को तुम्हारे बाप की नौकर नही जो तुम्हारे बोलते ही दौड़ पड़ें। दिन भर चल चल के हाथ पैर में झनझनाहट हो जा रही है लेकिन तुम मूर्खों को थोड़ी भी कॉमन सेंस नाम की चीज नही है।
जब परिजनों द्वारा विनती की जाती है तो दुत्कारते हुवे प्रसव पीड़ित महिला को जाकर नाटक बाजी मत करो कहकर पुनः आराम फरमाने चली जाती है।

सुबह तक दर्द से कराहती महिला और उनके परिजन अपने सम्बन्धित संतोष चौहान जो कि स्वयं पत्रकार हैं को इत्तेलाह करते हैं तो सुबह संतोष चौहान सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र पहुँचकर नर्स स्टाफ से सादर अनुरोध करते हैं कि कार्य के प्रति ऐसी लापरवाही कहीं परिजनों पर भारी मत पड़ जाए ,तो नर्स स्टाफ उल्टा हमारी ड्यूटी हमे मत सिखाओ कहकर पुनः अभद्रता का व्यवहार करने लगती है।
चूंकि उक्त नर्स महिला है यह जानकर पत्रकार भी मर्यादा का पालन करते हुवे नर्स से सम्मान पूर्वक अपनी बात रखते हैं।

बिना प्रसूति कक्ष ले गए वार्ड के बिस्तर में ही हो गया प्रसव

कल जो नर्स खुद को चाइल्ड स्पेशलिस्ट बोलकर महिला को गंवार और मूर्ख बोलकर डांट डपट कर रही थी कि अभी 15 दिन तक बच्चे होने में टाइम है।
जिसे सुनकर मजबूरीवश परिजन गरीबी के कारण अपमान का कड़वा घूंट पीकर भी रुके थे।
दिनांक 30 जून को ही सुबह प्रसव पीड़ित महिला ने बिना किसी डॉक्टर के एक बच्चे को जन्म दिया।
लापरवाही का ये आलम था कि अपने फोन में व्यस्त नर्सिंग स्टाफ द्वारा लेबर रूम तक भी महिला को ले जाना मुनासिब नही समझा गया।

डॉक्टर और नर्स स्टाफ के लापरवाही के कारण शिशु की हुवी मौत..!

मौत का जिम्मेदार कौन?

क्या यह गैर इरादतन हत्या नही?

जब वार्ड के बिस्तर में ही प्रसव हो गया तो अब अपने कारनामे छुपाने के चक्कर मे आनन फानन में मरीजो के परिजनों को इस बात को किसी को न कहने के लिए बार बार दबाव बनाया गया।

लेकिन दुखांत घटना यह हुवी की बिना लेबर रूम गए पैदा हुवे शिशु की मृत्यु इलाज़ के अभाव में जन्म से एक घण्टे के अंदर ही हो गई।

सुध बुध खोई महिला:-

2 दिन से नर्स स्टाफ के दुर्व्यवहार से पीड़ित महिला सिर्फ अपने बच्चे के खातिर हर अपमान का घूंट पीकर मजबूर थी, जब उसे अपने जिगर के टुकड़े की मौत की खबर मिली रो रोकर अपनी सुध बुध खो बैठी है।

डॉक्टर एवमं नर्स स्टाफ के लापरवाही बनी मौत की वजह:- परिजन

परिजनों का साफ कहना है कि अगर थोड़ी सी भी सजगता सारंगढ़ के डॉक्टर और नर्स ने दिखाया होता तो आज उनके बच्चे की मौत नही होती।

सूत्रों से प्रप्त जानकारी के अनुसार कुछ माह पहले ऐसे ही एक कारनामा कर चुका है सारंगढ़ स्वास्थ्य केंद्र;

अभी कुछ महीने पहले भी एक महिला जब प्रसव हेतु सारंगढ़ आई थी तो उसे भर्ती करने में इतनी लापरवाही बरती की वो अस्पताल प्रांगण में ही एक बच्चे को जन्म देने में विवश हो गयी थी।

बिना गैनोकोलॉजिस्ट के सिर्फ नर्शों के भरोशे सारंगढ़ सरकारी अस्पताल;

जब से डॉक्टर त्रिपाठी मेडम सेवानृवित्त हुवी हैं सारंगढ़ के नर्शों एवम कामचलाऊ डॉक्टरों की मेहरबानी से अस्पताल का संचालन हो रहा है।

नर्शों का व्यवहार देखकर तो कई गरीब व्यक्ति भी सरकारी अस्पताल जाने से बेहतर कर्ज लेकर प्राइवेट अस्पताल में इलाज कराने को मजबूर रहते हैं।

बेड में दूर से फेंक कर देते हैं खाना:-

जो व्यवहार जेल में कैदियों से भी नही की जाती उससे गन्दा व्यवहार सारंगढ़ के गरीब मरीजो के साथ किया जाता है।
जब हमारे पत्रकार ने लोगों से जानकारी ली तो मरीज बोलते हैं कि खाना को भी कोरोना न हो जाये बोलकर दूर से फेकने के अंदाज में दिया जाता है जो कि मानवाधिकार का सीधा सीधा उलंघन की श्रेणी में आती है।

डॉक्टरों का पूरा संरक्षण प्राप्त है स्टाफ एवं नर्सों को:-

जब सैंया भये कोतवाल तो डर काहे की का कहावत सारंगढ़ में फिट बैठती है।
मरीजों से दुर्व्यवहार की शिकायत जब डॉक्टरों से की जाती है तो डॉक्टर उल्टा मरीजों की गलती बताकर चुप करा देते हैं।

कोई व्यक्ति अगर नियमावली की बात करने की जुर्रत करता है तो सीधा बाहर ले जाओ कह के रेफर का कागज लिख कर गरीबों को दबाया जाता है..

फलस्वरूप आर्थिक रूप से कमजोर मरीज यातना सह कर भी इलाज़ करवाने के लिए मजबूर होते हैं।

कटेली सेंटर सहित कई क़वारेंन टाईन सेंटर में 14 दिन क़वारेंन टाईन अवधी समाप्त हो जाने के पश्चात भी ब्लड सेम्पल नही लेने वाले कर्मचारियों के अधिकारी श्री घृतलहरे जी से जब सम्पर्क किया गया तो-

क्या कहते है चिकित्सा अधिकारी घृतलहरे?

जब कल हमारे एक पत्रकार ने घृतलहरे जी से पूछा कि आपके स्वास्थ्य केंद्र में कौन से विभाग में कौन से डॉक्टर उपलब्ध हैं तो उनसे भी दुर्व्यवहार पूर्वक कहा गया कि पहले जाओ CHMO- मुख्य जिला चिकित्सा अधिकारी से आदेश लेकर आओ फिर जानकारी दूँगा।

जब आज हमारे पत्रकार जगन्नाथ बैरागी ने अपना परिचय देते हुवे एवं घटना की जानकारी देते हुवे उनसे सवाल पूछा तो साहब की आवाज़ में लड़खड़ाने लगी..! बोले
की हमारे यहां कोई महिला चिकित्सक नही हैं।

जब उन्हें 30 जून के घटना के सम्बंध में पूछा तो अभी तक इसकी फाइल मेरे पास नही आई है मैं देखा नही हु देखकर बताता हूं कहकर फोन काट दिया गया।

अब सोचने वाली बात यह है कि एक सक्षम अधिकारी को किसी शिशु की मृत्य की जानकारी नही होना कितनी बड़ी लापरवाही की बात है।

जब इस बावत जानकारी हेतु CHMO- श्री केशरी जी को उनके मोबाईल में कई बार कॉन्टेक्ट किया गया तो उनके द्वारा फ़ोन ही रिसीव नही किया गया।

क्या सारंगढ़ में कभी स्वास्थ्य अमला गरीबों एवं असहायों के लिए ऐसे ही यम प्रताड़ना का केंद्र बने रहेगा?

इसके बारे में पीड़ित मरीज के स्वजन कलेक्टर एवम स्वास्थ्य मंत्री से शिकायत करने की बात कह रहे हैं, अब देखते हैं बड़े अधिकारी इस मामले में क्या कार्यवाही करते हैं….

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