महासमुंद

अंचल में मजदूरों का पलायन जोर पकड़ चल रहा है खुलेआम हो रही मानव तस्करी…

अंचल में मजूदरो का पलायन जोर पकड़ रहा है। मानव तस्करी के रूप में पलायन का दंश यह क्षेत्र वर्षो से झेल रहा है। प्रशासन मूक दर्शक बनकर अपनी मौन सहमति के जरीए पलायन को हरी झण्डी दे रहा है। इसके पूर्व वर्षो में भी मजदूरो के मय परिवार बर्तन लकड़ी लेकर पलायन की सचित्र ख़बर को भी सिरे से ख़ारिज कर प्रशासन पलायन के विपरित कागजी रिपोर्ट प्रसतुत करता रहा है। जबकि इस बार कोरोना संक्रमण काल में लाॅक डाउन के दौरान प्रवासी मजूदरो के घर वापसी का बड़ा जत्था देख हर कोई दंग रह गया था। शासन पंचायत स्तर पर प्रवासी मजदूरो के घर वापसी पर क्वारेंटाइन सेंटरो में उन्हें रखने को मजबूर हुआ था। हजारों की तादाद में मजूदरो के घर वापसी पर पलायन के वास्तविक रिकार्ड प्रशासन के सामने आ गया। बावजूद दीपावली के पहले ही पलायन का अध्याय फिर से प्रारंभ हो गया है। लाॅक डाउन में अपने कार्यस्थल से पैदल चलकर घर पंहुचे उन मजदूरो के प्रति हमदर्दी रखने वाली सरकार भी अब उनके पलायन पर कोई हमदर्दी नही रख रही। इधर रात के अंधेरे में मजूदरो को परिवार सहित छोटे वाहनो से निर्धारित स्थान पर ख़डी बसों में बैठाकर पलायन का रैकेट चलाया जा रहा है। मजदूर दलाल थोड़ी रकम एडवांस देकर मजदूरों को परिवार सहित कर्ज और अन्य राज्य भेजकर उनका शोषण कर रहे है। श्रमिक उत्पीड़न पर प्रशासन की नजर ना पड़ना गले नही उतर रहा है। प्रशासन शिकायत का मोहताज हो गया है। रात्रि गश्त और सुरक्षा के लिए पैनी नजर वाले अमले की निगाहे मजदूरो से भरे बस वाहन पर क्यों नही पड़ रही यह समझ से परें है। शुक्रवार 6 नवबंर की रात्रि कांग्रेस के एक कददावर नेता ने मजदूरों के उत्तर प्रदेश पलायन पर विडियों सहित सूचना पुलिस को भेजी थी। जिसके बाद पुलिस ने बाराडोली के मजदूरो को एक वाहन में परिवार सहित पलायन करते रोककर पुछताछ की। पुछताछ के लिए मजदूरो को थाने में लाया गया। जहां से उनके रूचि से अन्यत्र जाने की बात कहते हुए उन्हें छोड़ दिया गया। सवाल यह उठता है कि मजदूरो को रोककर उन्हें स्थानीय क्षेत्र में ही मनरेगा कार्यो से क्यों नही जोड़ा गया। मजदूरो को श्रम अधिनियम की जानकारी देते हुए उन्हें पलायन से क्यों नही रोका गया। ऐसा नही है कि कोई रूचि से दूसरे राज्य श्रम करने को जाए। मजदूरों को कर्ज के जंजाल में फांस कर मजदूर दलाल उन्हें दलदल में धकेल रहे है और कोरोना के पूर्व की ही तरह सब है खामोश।

लोचन चौधरी की रिपोर्ट

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