जांजगीर-चांपा

कोरोना के खेल में, देश के निचले तबके बर्बादी की ओर- लालू गबेल

बेरोजगार, गरीब मजदूर, छोटे व्यवसायी, किसान, मध्यमवर्गीय परिवार बेरोजगारी के साथ महंगाई की मार झेल रहे।

आखिर कब छूटेगा कोरोना का यह माया जाल, पूरे देश में आधे से ज्यादा आबादी आर्थिक गुलाम बनने की स्थिति में है।

पूरे ब्रम्हांड के ज्ञानी वैज्ञानिक दो साल में भी कोरोना का तोड़ नही निकाल पाए तो, आखिर कोरोना के खेल का राज क्या है।

मालखरौदा, जांजगीर चाम्पा- सामाजिक कार्यकर्ता लालू गबेल ने कोरोना को लेकर बड़ा सवाल करते हुए कहा कि आखिर इस कोरोना का तोड़ क्यों नही निकल पा रहा, अचानक से ऐसे ब्लास्ट होता है जैसे शोले फ़िल्म का गब्बर सिंग आ गया हो, लोगो मे कोरोना का ऐसे खौफ दिखता है जैसे मौत सामने खड़ी हो। और कोरोना की खास बात यह कि जनवरी फरवरी माह में शरू होकर अप्रैल मई तक ज्यादा असरदार रहता है, बाकी दिन सामान्य चलते रहता तब ये कहाँ जाता है, बड़े बड़े चुनाव, रैली, जुलूस, आंदोलन, मॉल-मेले और शहरों की हजारों लाखों भीड़ में भी कोरोना कही भटकता तक नहीं लेकिन एक निश्चित समय में ऐसे विकराल रूप लेता है जैसे मानव जीवन बचेगा ही नही।
लालू गबेल ने कहा कि कोरोना को लेकर आम लोगो मे भय का ऐसा माहौल रहता है कि घर के कोई एक सदस्य छींक भी दे तो बाकी सदस्यों की धड़कनें तेज हो जाती है। पिछले दो सालों से कोरोना का यह खौफनाक मंजर आम जनजीवन को तहस नहस कर रख दिया है। सबसे बड़ी विडंबना तो यह कि पूरे विश्व मे अभी तक ऐसा कोई ज्ञानी सामने नही आ पाया जो कोरोना का तोड़ निकाल सके। आधुनिकता के तमाम संसाधन और विश्व विज्ञान भी कोरोना के सामने बेबस नजर आ रहे। पिछले दो सालों से कोरोना अपना बर्थडे बड़े ही धूमधाम से मनाते आ रहा है और अब ओमीक्रॉन के साथ तीसरा एनिवर्सरी की तैयारी में कोरोना कोई कसर नही छोड़ रहा हैं। हो सकता है आगे आने वाले दिनों में कोविड और ओमीक्रॉन के बच्चे पैदा होकर बर्बादी के बचेखुचे कसर को पूरा भी कर दे।
जिसका पहला शिकार देश के भविष्य स्कूली बच्चे होते है दूसरा शिकार बेरोजगार और छोटे व्यवसायी, तीसरा शिकार छोटे किसान, गरीब मजदूर होते है। जिनका पिछले दो सालों में जीना मुश्किल हो गया है।
वही अवसरवादी, भ्रस्टाचारी, जमाखोरी और कालाबाजारी करने वाले लोग भी लूट मचाने कोरोना से भी आगे है, जिनको पहले से सब पता रहेता है कि कब कोरोना कहर बरपायेगा और ये लूटने की तैयारी शुरू कर देते है। इसमें भी खास बात यह है कि ऐसे कारनामों में भी शासन प्रशासन का कोई नियंत्रण नहीं रहेता।
वही कुछ नामचीन वर्ग मालामाल हो रहे तो आम लोग बेहाल आर्थिक गुलामी की ओर जा रहे है। समझ नही आ रहा कि इस कोरोना के मायाजाल का राज क्या है और कब इसका खेल खतम होगा।
कोरोना से लड़ने शासन अपना पूरा खजाना झोंक रहा फिर भी कही कोई राहत नही और ना ही आम लोगो की बदहाली सुधरती नजर आ रही है। एक उम्मीद थी कि वेक्सीनेशन से स्थिति सुधर जायेगी पर यहाँ तो दो दो डोज वैक्सीन लगवाने वाले ही कोरोना के चपेट में आ रहे। और खास यह भी की मामूली सर्दी में भी कोरोना पॉजिटिव आता है। अभी लोगो मे कोरोना का भूत ऐसे सवार है कि रसोई की खुशबू से भी आदमी छींक दे तो घरवाली कोरोना टेस्ट कराने भेज देती है।
गबेल ने कहा क्या कोरोना वास्तविक में विनाशकारी है या कोई वैश्विक खेल, जिसमे डॉक्टर अपने विवेक से नही सिर्फ कोरोना प्रोटोकॉल और उसके गाइडलाइन से ही ईलाज कर सकता है।
आखिर कब छूटेगा कोरोना का यह माया जाल, जिसमे देश और आम जनता तबाही की ओर है।

लाइव भारत 36न्यूज़ से विजय धिरहे

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